B. Saroja Devi: Bharatiya Cinema Ki Abhinaya Saraswati Ka Sitara

B. Saroja Devi: Bharatiya Cinema Ki Abhinaya Saraswati Ka Sitara

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b.saroja devi image credit instagram
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भारतीय सिनेमा में कुछ नाम ऐसे हैं, जो सिर्फ अदाकारी के लिए नहीं, बल्कि अपनी बहुभाषी प्रतिभा और लंबे करियर के लिए याद किए जाते हैं। ऐसी ही एक अदाकारा थीं बी. सरोजा देवी, जिन्होंने करीब सात दशकों तक 200 से भी ज्यादा फिल्मों में काम कर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।

 

शुरुआती जीवन

B. Saroja Devi     का जन्म 7 जनवरी 1938 को चन्नापटना तालुक, मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) में एक वोक्कालिगा परिवार में हुआ था। उनके पिता भैरप्पा पुलिस अफसर थे और मां रुद्रम्मा गृहिणी। पढ़ाई उन्होंने बेंगलुरु के सेंट टेरेसा गर्ल्स हाई स्कूल में की। बचपन से ही उनके पिता ने उन्हें नृत्य सीखने के लिए प्रोत्साहित किया और फिल्मों की ओर मोड़ा।

फिल्मी करियर की शुरुआत

सिर्फ 17 साल की उम्र में सरोजा देवी ने अपनी पहली कन्नड़ फिल्म ‘महाकवि कालिदास’ (1955) में अभिनय किया। इसके बाद तेलुगु फिल्म ‘पांडुरंग महात्म्यम’ (1957) से उन्होंने तेलुगु सिनेमा में कदम रखा।

लेकिन असली पहचान उन्हें तमिल फिल्म ‘नाडोडी मन्नन’ (1958) से मिली, जिसमें उनके हीरो थे एम. जी. रामचंद्रन (एमजीआर)। इस फिल्म की सफलता ने उन्हें तमिल सिनेमा की टॉप हीरोइनों में शामिल कर दिया।

चार भाषाओं में सफलता

B. Saroja Devi     ने न सिर्फ तमिल, बल्कि कन्नड़, तेलुगु और हिंदी फिल्मों में भी धूम मचाई। हिंदी फिल्मों में उन्होंने दिलीप कुमार के साथ ‘पैग़ाम’ (1959), शम्मी कपूर के साथ ‘प्यार किया तो डरना क्या’ (1963) और सुनील दत्त के साथ ‘बेटी बेटे’ (1964) जैसी फिल्मों में काम किया।

तमिल फिल्मों में उनका और एमजीआर का साथ सुपरहिट रहा — उन्होंने 26 फिल्मों में साथ काम किया, जैसे ‘एनगा वीट्टू पिल्लै’ (1965), ‘अन्बे वा’ (1966) आदि। महिलाओं में उनके फैशन का जबरदस्त क्रेज था — उनकी साड़ियां, ब्लाउज़ और ज्वेलरी लड़कियां कॉपी किया करती थीं।

कन्नड़ सिनेमा में उन्होंने डॉ. राजकुमार के साथ कई सफल फिल्में दीं जैसे ‘मल्लम्मना पावाडा’ (1969), ‘न्यायवे देवरु’ (1971)। तेलुगु में भी एन. टी. रामाराव और अक्किनेनी नागेश्वर राव के साथ उनकी जोड़ी सुपरहिट रही।

शादी और बाद का करियर

1967 में उन्होंने श्री हर्षा से शादी की। शादी के बाद उन्होंने धीरे-धीरे तमिल फिल्मों में काम कम किया और कन्नड़ तथा तेलुगु फिल्मों पर ज्यादा ध्यान दिया। 1986 में श्री हर्षा के निधन के बाद सरोजा देवी ने कुछ समय के लिए फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली।

हालांकि, फैंस और निर्माताओं के आग्रह पर उन्होंने फिर से फिल्मों में काम शुरू किया, लेकिन अब वे रोमांटिक हीरोइन के बजाय कैरेक्टर रोल्स में नजर आने लगीं। उनकी आखिरी तमिल फिल्म ‘आधावन’ (2009) थी।

सम्मान और पुरस्कार

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उनकी कला और योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें कई सम्मानों से नवाजा —

  • पद्मश्री (1969)
  • पद्म भूषण (1992)
  • राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की ज्यूरी की चेयरपर्सन भी रहीं।
  • कर्नाटक और तमिलनाडु सरकारों ने भी उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड्स दिए।

2010 में उनके नाम पर “पद्म भूषण बी. सरोजा देवी राष्ट्रीय पुरस्कार” शुरू किया गया, जो हर साल कला के क्षेत्र में योगदान देने वाले कलाकारों को दिया जाता है।

निधन

14 जुलाई 2025 को 87 साल की उम्र में बेंगलुरु स्थित अपने घर में बी. सरोजा देवी का निधन हो गया। वे उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थीं। उनके निधन से सिनेमा जगत में शोक की लहर दौड़ गई।

एक अमिट छवि

बी. सरोजा देवी सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि वे “अबिनया सरस्वती” (अभिनय की सरस्वती) और दक्षिण भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार कही जाती थीं। उनका नाम आज भी भारतीय सिनेमा की स्वर्णिम विरासत में चमक रहा है।

 

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